बुधवार, 31 जुलाई 2013

आर टी आई में किसी उस्ताद की ज़रूरत हो तो क्या करें ...

होता है, बहुत बार ऐसा होता है और आप के साथ भी होगा कि किसी सूचना की इंतज़ार आप कितनी डेसपिरेटली कर रहे हैं लेकिन जन सूचना अधिकारी का बेतुका का जवाब आप की उम्मीदों पर पानी फेर देता है।

ऐसे में क्या करें, किस से डिस्कस करें, मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि हमारे प्रश्न हो सकता है कि कुछ इस तरह के हों कि हम अपने कार्य-स्थल पर उन की चर्चा ही न करना चाहते हों, मेरे साथ तो बहुत बार ऐसा होता है।

और मैंने आरटीआई के पांच वर्ष तक धक्के खाने के बाद यही सीखा है कि कोई आरटीआई विषय को डील कर रहा है इस का यह मतलब नहीं कि उस का ज्ञान भी श्रेष्ठ ही होगा। मुझे कभी भी यह नहीं लगा, कारण यही है कि हम लोग विषय का अध्ययन करने से कतराते रहते हैं, हम यही सोचते हैं कि बाबू है ना, लिख देगा कुछ भी जवाब, नहीं....अगर हम में ही कुछ नया जानने की इच्छा-शक्ति नहीं है, बाबू बेचारे से क्यों इतनी अपेक्षा कर लेते हैं लोग, मुझे कभी समझ में नहीं आया।

हां तो बात चल रही थी कि आर टी आई में कहीं अटक जाने पर बाहर निकलने के उपायों की ... मैंने काफ़ी वकीलों से भी बात की , वे अपने काम में धुरंधर हो सकते हैं, लेकिन आरटीआई के मामले में वे कुछ ज़्यादा मदद कर नहीं पाते। क्या है ना, किसी से बात करने पर एक-दो मिनट में ही आप को पता चल जाता है कि यह मेरी समस्या का समाधान बता पायेगा कि नहीं...

हां तो फिर क्या करें.................इस के लिए मैंने एक तरीके का आविष्कार किया कि जब भी मुझे किसी विषय पर बहुत ज़रूरी सूचना चाहिए होती थी लेकिन जन सूचना अधिकारी द्वारा दो टूक जवाब मिल जाता तो मैं एक साइट ढूंढ ली जिस का यू आर एल यह है ...........   http://www.rtiindia.org

इस साइट की तारीफ़ करने के लिए मेरे पास शब्द ही नहीं हैं, जिस तरह का मार्गदर्शन वे कर देते हैं ऐसा तो कोई मोटी फीस लेकर भी न कर पाए.......मैं अपना प्रश्न वहां पर जा कर करता और मेरे पास कुछ ही घंटों में जवाब मिल जाते ... मैं उन का अध्ययन करने पर प्रथम अपील या सैकेंड अपील करता और लगभग हमेशा ही मुझे मेरी मांगी गई सूचना पाने में सफलता ही मिली ।

हां, एक बात और पाठकों से शेयर करना चाहूंगा कि प्रथम अपील में केवल इतना ही कह न चुप हो जाएं --एक सुझाव है---कि जन सूचना अधिकारी ने सूचना नहीं भेजी, उस में कुछ और भी डालें, क्या? -- मैं सीआईसी (मुख्य सूचना आयोग) की साइट पर जा कर थोड़ा सा होमवर्क कर लिया करता ... उस का भी एक आसान सा तरीका है, आप जिस विषय के बारे में सूचना पाना चाहते हैं, आप सीआईसी साइट पर सर्च-बाक्स में उन की-वर्ड्स को डाल दें, तुरंत आप के पास वे तमाम रिज़ल्ट्स आ जाते हैं जिस पर केंद्र सूचना आयोग ने आरटीआई आवेदन करने वालों के हक में निर्णय लिये होते हैं। बस थोड़ी सी और मेहनत कि आप को उन में से दो चार निर्णयों का अध्ययन करना होगा, उन का केस नंबर नोट करें और पहली अपील करते वक्त इन केसों के नंबर डाल दें ...मैं तो कईं बार उन के कुछ अंश भी डाल देता था कि जब केंद्र सूचना आयोग ने इस तरह के केसों में सूचना देने की सिफारिश की है तो यह जन सूचना अधिकारी क्यों इस की राह में रोड़े अटका रहा है, बस इतना ही लिखना काफ़ी होता था, कुछ ही दिनों या हफ्तों में सारी सूचना पहुंच जाती थी।

मेरे विचार में जो ट्रेड-सीक्रेट्स मैं शेयर कर रहा हूं उन्हें धीरे धीरे शेयर करना चाहिए, इसलिए आज इतना ही .....हां तो बात आरटीआई गुरू की हो रही थी, कोई गुरू वुरू नहीं है इस मामले में किसी है, हम लोग आपस में एक दूसरे के अनुभवों से ही सीखते हैं, नेट है ना, बस वहां से हेल्प ले ली। और एक बात सूचना के अधिकार अधिनियम का एक बार अच्छे से अध्ययन ज़रूर कर लेना चाहिए, नेट पर तो जगह जगह पडा़ ही है, बाज़ार में भी आसानी से मिल जाता है।

मैं भी आरटीआई आदि की तरफ़ नहीं जाता है लेकिन दो एक इंसान ऐसे मिल गये जिन की वजह से ज़िंदगी के बेहतरीन चार वर्ष खराब हो गए, क्या करें, ज़िंदगी का सफ़र है, हर तरह के इंसान हैं और मिलेंगे भी ....लेकिन मैं बहुत बेबाकी से यह स्वीकार करता हूं कि मुझे जितनी मदद आरटीआई कानून से मिली इतनी तो शायद कोई परम मित्र भी न कर पाता, परेशान तो मैं हुआ, इस चक्कर में बहुत सी व्यक्तिगत प्रायरटीज़ को तो नज़र अंदाज़ किया ही, लेकिन कईं बार जब पानी आप के नाक तक पहुंच जाए तो केवल सूचना रूपी लाइफ-गार्ड ही आप की रक्षा कर सकता है और मेरे साथ भी यही हुआ। इसलिए करने वाले ने तो मेरा बुरा करना चाहा लेकिन देखिए मैं पिछले चार वर्षों में इतना कुछ सीख गया कि आरटीआई पर किताब लिखने के लिए बिल्कुल तैयार हो गया.....................हां, फिर से ज़िंदगी के सफर की बात याद आ गई ......dedicated to those cherished moments of life which i missed out just searching for vital information -- i got the information but those golden four years of life can't be brought back. Thanks to all those SADISTIC SOULS !


मंगलवार, 30 जुलाई 2013

आर टी आई का ऑनलाईन आवेदन भी होता है


मैं लगभग पिछले पांच वर्षों से आर टी आई का इस्तेमाल कर रहा हूं ... लेिकन एक बार बड़ी अजीब सी लगती थी कि वैसे तो सरकार ने इसे अपनी तरफ़ से अच्छा खासा सिंपल बनाया है लेकिन पहले आवेदन लिखो, फिर पोस्टल-आर्डर के लिए डाकखाने के कुछ चक्कर काटो, ऐसा नहीं होता कि आप को हर बार दस रूपये का पोस्टल आर्डर तुरंत मिल जाए---काफी बार तो वह खत्म हुआ ही बताते हैं। चलिए, उस के बाद फिर से स्पीड-पोस्ट या रजिस्ट्री करवाओ....फिर सूचना देने वाला कार्यालय लिखेगा कि इतने रूपये और भेजो अगर आप को सूचना के रूप में इतनी फोटोकापियां चाहिए। फिर से वही सारी प्रक्रिया शुरू। इसलिए मुझे यह सब बहुत पकाने वाला काम लगता था। बहरहाल, वह मेरी व्यक्तिगत राय है ..लेकिन जिसे जिस समय जो सूचना चाहिए होती है उस के लिए इस तरह की छोटी मोटी परेशानी कोई बात नहीं होती।

मुझे हमेशा ऐसा लगता था कि हर काम तो आज ऑन-लाइन हो रहा है, ऐसे में सूचना के अधिकार के अंतर्गत भी सूचना पाने की सुविधा भी तो लोगों को ऑन-लाइन किस्म की मिलनी चाहिए।

बहरहाल मैं यह सोचता ही रहा कितने लंबे समय तक....लेकिन केवल सोचने ही से थोड़ा न सब कुछ मिल जाता है।


कुछ हफ्ते पहले की ही बात है कि द हिंदु में एक बिल्कुल छोटी सी खबर दिखी कि अब सूचना के अधिकार अधिनियम के अधीन आवेदन आॉन-लाइन भी किये जा सकते हैं। कुछ ज़्यादा डिटेल दिये नहीं दिये थे, उस खबर में ....इसलिए थोड़ी मेहनत करनी पड़ी और मैं पहुंच गया इस की साइट पर जिस का लिंक नीचे दे रहा हूं .....   www.rtionline.gov.in

आप भी इस साइट का टूर कीजिए -- मैंने भी इस के माध्यम से एक आरटीआवेदन किया था ऑनलाइन --फीस भी दस रूपये क्रेडिट-कार्ड से ही जमा हो गई थी, तुरंत आप के आवेदन का पंजीकरण कर लेते हैं और आप की ई-मेल में पंजीकरण संबधी सूचना भी आ जाती है.

कुछ ही दिनों में मुझे सूचना भी मेरी ई-मेल के माध्यम से ही प्राप्त भी हो गई थी।

अच्छा लगा यह सिस्टम... कोई झंझट नहीं डाकखाना, लिफ़ाफे, रजिस्टरियां, स्पीड-पोस्ट, पोस्टल आर्डर ---बिल्कुल आज के ज़माने जैसी क्विक फिक्स प्रणाली।

इस में अभी थोड़ी सी दिक्कत बस यही है कि अभी केंद्रीय सरकार के सभी मंत्रालय इस प्रणाली में शामिल नहीं किए जा सके हैं, काम चल रहा है, क्योंकि इस के लिए पहले तो उस मंत्रालय के कुछ लोगों को इस सिस्टम के बारे में ट्रेन किया जाता है। वैसे इन का लक्ष्य है कि इन्होंने सभी मंत्रालयों एवं सरकारी विभागों को इस ऑनलाइन प्रणाली से ही कवर करना है। बहुत अच्छा सिस्टम लगा मुझे तो ... वैसे तो अभी भी आप देखेंगे कि काफ़ी मंत्रालय हैं जो इस सिस्टम से जुड़ चुके हैं। हां, आवेदन फीस वही दस रूपये ही है, आगे कोई फोटोकापी आदि के चार्जेज चाहिए होंगे तो वे स्वयं आप से संपर्क करेंगे।

दरअसल मैं अभी श्योर नहीं हूं कि जो जवाब उन्होंने मेरे को ई-मेल से भेजा है क्या वे उसे डाक से भी भेजेंगे ....ठीक है मुझे तो वह जवाब डाक से नहीं चाहिए था, मेरा काम ई-मेल से चल गया था, लेकिन यह बात का ध्यान रखना ज़रूरी है.

अब आधुनिक तकनीक कोई भी हो हम कितनी भी बातें कर लें, इस तरह की बातों का असल फायदा तो साधन संपन्न लोग उठा पाते हैं --देखिए न इंटरनेट भी चाहिए, क्रेडिट कार्ड भी चाहिए ---शायद नेट बैंकिंग या डेबिट कार्ड से भी आप दस रूपये के आवेदन का भुगतान कर सकते हैं, अभी मुझे ठीक से याद नहीं, लेकिन आप मेरे द्वारा ऊपर दिये गये लिंक पर जाएंगे तो सब ठीक से समझ जाएंगे।

कैसी लगी आप को यह जानकारी, लिखियेगा। बहुत दिनों से इसे पाठकों से शेयर करना चाह रहा था लेकिन मेरे इस सूचना के अधिकार ब्लॉग का पासवर्ड ही मुझे नहीं मिल रहा था। आज मिल गया और मैं बैठ गया अपना ज्ञान झाड़ने।
पता नहीं क्या कारण है -- मुझे लगता है कि इस ऑनलाइन आरटीआई सिस्टम की ज़्यादा पब्लिसिटी नहीं की गई है, कारण कुछ कुछ तो मैं अनुमान लगा सकता हूं , बाकी क्या कहें, चलिए इस तरह की प्रणाली शुरू हो गई यही अपने आप में एक उपलब्धि है।

न तो मैंने बस उस दिन द हिंदु के अलावा इस के बारे में कोई खबर ही देखी, न ही टीवी ...पता नहीं पिछले दो-तीन महीनों से न तो अखबार ही ढंग से पढ़ पाता हूं और न ही टीवी मन को ज़्यादा भाता है ......अब भाई बलम पिकचारी और रांझना के वही दो-तीन गीत कितनी बार सुनें ......लेकिन एफएम मैं जब भी मौका मिलता है सुन लेता हूं ....वहां भी तो इस आनलाइन आरटीआई के बारे में कुछ नहीं सुना।

चलिए भविष्य के लिए ही सही लेकिन ऊपर दिये गये लिंक को नोट कर लीजिए।

मैं एक कप चाय का लिंक लगाने लगा तो मुझे हिंदी वाला कोई लिंक नहीं मिला --इस फिल्म के बारे में मैंने इसी ब्लाग पर एक पोस्ट भी लिखी थी...कहते हैं ना जब कोई दिल से बोलता है तो बात दूसरे तक पहुंच ही जाती है ..इसलिए आप इस वीडियो को देखिए --काम की बात आप तक पहुंच ही जाएगी। और कहीं से इस फिल्म देखने का जुगाड़ हो जाए तो बात ही क्या है, मैंने इसे दूरदर्शन पर देखा था .........




शनिवार, 20 जुलाई 2013

तेज़ाब से मौत नहीं होती, तेज़ाब हर पल मारता है .. भाग २

हां तो मैं पिछली पोस्ट में ९जुलाई २०१३ की दैनिक भास्कर के संपादकीय लेख की बात कर रहा था, यह मुझे इतना छू गया कि मैंने इस की क्लिपिंग संजो कर रखने की बजाए इसे नोटबुक में लिख लिया।
वाक्या ईरान की अमीना का है। इलैक्ट्रोनिक्स की ग्रेजुएट अमीना बहरामी ऑफिस से लौट रही थी कि माजिद मोवाहदी नामक युवक ने उस पर तेजाब फैंका। माजिद उसके पीछे पड़ा था। जबकि अमीना उसे साफ इंकार कर चुकी थी। चेहरा, गला झुलस गया। आंखे जल कर खाक हो गईं। बर्बाद अमीना ने लंबी लड़ाई लडी। ईरान में आंख के बदले आंख का कानून है। उसने वही इंसाफ मांगा। अदालत ने आखिर मान लिया।
लेकिन जब माजिद की आंखों में तेजाब की पांच बूंदें डालकर डॉक्टर उसे अंधा बनाने जा ही रहे थे, ऐन मौके पर अमीना ने उसे माफ कर दिया। दुनिया के मानवाधिकार संगठनों की अपील पर। लेकिन सब सकते में आ गए , जब माजिद ने माफ़ी को कानूनी ढाल बनाकर उसके इलाज का खर्च उठाने से बाद में साफ़ इंकार कर दिया।
दिमाग, दिल और नीयत सब कुछ भ्रष्ट कर देता है तेजाब।
......

पिछले दो दिन से टीवी -अखबार में देख कर अच्छा लगा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बृहस्पतिवार से तेजाब बिना किसी सरकारी पहचान पत्र के नहीं बिकेगा। और दुकानदार को तेजाब की सारी बिक्री का लेखा जोखा रखना होगा। और भी एक बहुत अच्छी बात कि दुकानदार को बिक्री की सूचना संबंधित पुलिस स्टेशन को भी देनी होगी।
अच्छा है, जितने सख्त नियम हो सकें, बनने चाहिए। एक बात और मैंने सुनी कि जिन लैबोरेट्रीयों में एसिड का इस्तेमाल होता है, उन के लिए भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सुनिश्चित किया जाए कि वे लैब से बाहर एसिड न ले पाएं।
मैं सोच रहा था कि दुकानदार के ऊपर जब इस तरह की बंदिश होगी कि उसे रिकार्ड रखना होगा, पुलिस को सूचित करना होगा, सुप्रीम कोर्ट का निर्णय है , ऐसे में वह क्यों चंद रूपयों के चक्कर में इतनी लफड़ेबाजी में पड़ेगा, लगता है ... such restrictions would definitely act as a deterrant for unscrupulous sale of this killer liquid.

वैसे मैं यह सोच रहा था कि आज से लगभग तीस वर्ष पहले की बात है कि मैं रोहतक की एक दुकान से एसिड लेने गया था ... मुझे याद है उस ने मेरा नाम-पता आदि एक रजिस्टर में लिखवाया था.....मैं उस समय यही सोच रहा था कि इस का क्या फायदा, अगर कोई गलत नाम गलत पता लिखवा कर एसिड का मिसयूज़ कर ले तो उसे कैसे ढूंढोगे।
जो भी हो, एसिड को टॉयलेट की सफ़ाई के लिए इस्तेमाल करने के बहाने मार्कीट में खुले बिकने देना जोखिम से खाली नहीं है, घर के बाहर चल रही युवतियां की सुरक्षा करना हम सब का साझा दायित्व भी है, आप क्या कहते हैं?

शुक्रवार, 19 जुलाई 2013

तेज़ाब से मौत नहीं होती, तेज़ाब हर पल मारता है...भाग १

कितने हादसे हो गये, छोटी छोटी बच्चियों की ज़िंदगीयां खराब कर डालीं इन तेज़ाब फैंकने वाले हैवानों ने।
दस दिन पहले की बात है मुझे अजमेर स्टेशन पर कुछ काम था, मैं बाहर निकला तो मुझे कुछ किताबें खरीदनी थीं, किसी ने बताया कि सामने ही चूड़ी बाज़ार है, बस वहां से बाएं मुड़ेंगे तो किताबों की दुकानें आ जाएंगी।
मैं जिस रास्ते से जा रहा था तो मैं एक दो दुकानों को देख कर हैरान रह गया कि वहां पर एसिड दुकान के बाहर रखा पड़ा था, बोतलों में --पीले रंग का तेज़ाब...वैसे तो कोई खास बात नहीं, एसिड खरीदना वैसे कौन सा इतना मुश्किल काम रहा है, कोई भी जा कर ले आए। लेकिन जिस तरह से बोतलें तैयार कर उसे दुकान के बाहर रख छोड़ा गया था, उसे देख कर मुझे किसी शरारत, दुर्घटना के अंदेशे का ध्यान आ गया।
कितना घिनौना और पाशविक काम है किसी ठीक ठाक बंदे पर तेज़ाब फैंक कर उस की ज़िंदगी को नर्क बना देना।
९जुलाई २०१३ का दैनिक भास्कर (जयपुर) देख कर आस बंधी ....
बगैर कानून िबक रहा है तेज़ाब, सुप्रीम कोर्ट में अहम् सुनवाई आज..... सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को चेतावनी दी है कि वह एसिड बेचने के कायदे तय करे। वरना कोर्ट इसकी बिक्री पर ही रोक लगा देगी। 
भास्कर में संपादकीय भी उस दिन था -- तबाही रोकने के लिए तेज़ाब पर ही रोक लगानी चाहिए......
जब पूर्व प्रधानमंत्री एच डी दैवेगोड़ा की पत्नी चेन्नमा पर तेज़ाब फेंका गया तो सारा राष्ट्र भौंचक रह गया था। बारह वर्ष हुए उस वारदात को। उन की पुत्रवधु भी इस हमले का शिकार हुई थी। मामला पारिवारिक कलह का था। हमलावर उन का भतीजा लोकेश था। पूजा कर हरदनहल्ली के शिव मंदिर से बाहर निकली थीं चेन्नमा। लोकेश के हाथ में एक बाल्टी थी। ऊपर पूजा के फूल सजे थे। नीचे तेज़ाब भरा था। वही फैंका। पुलिस को कोई शक न हो सका।
कोई हथियार इतना सस्ता, इतनी आसानी से मिलने वाला और इतनी सरलता से हमले में काम आने वाला हो ही नहीं सकता जितना कि तेजाब। और कोई दूसरा हथियार जिस्म और इंसानियत की ऐसी तबाही नहीं ला सकता, जितना कि तेज़ाब। क्योंकि इसे सुरक्षाकर्मी, स्कैनर, मैटल डिटेक्टर पकड़ ही नही ंसकता, सीसीटीवी भी नहीं।
तेज़ाब से मौत नहीं होती, तेज़ाब हर पल मारता है। 
तेज़ाब फैंकने वाले किस कदर हैवान होते हैं, इसका सबसे हैरान कर देने वाला वाक्या ईरान का अमीना केस है। चलिए इस के बारे में अगली पोस्ट में बात करते हैं।