शनिवार, 10 सितंबर 2016

और चोर भाग निकला..

आज मैं ड्यूटी पर जा रहा था तो देखा कि लखनऊ के फतेहअली चौराहे पर एक प्राईवेट बस रुकी हुई है ..पहले तो एक २०-२५ साल का युवक तेज़ी से भागता हुआ दिखा .. उस के पीछे बिल्कुल मेरे जैसा तोंदू-तोतला कंडक्टर, अब उस से कहां भागा जाए...हांफ रहा था ...मैं जल्दी में था,  परिणाम जानने के लिए नहीं रूका...लेकिन मुझे इस बात में बिल्कुल भी संदेह नहीं कि वह युवक आराम से भाग गया होगा...

युवक बहुत गरीब, फटेहाल लग रहा था ... भूखा-प्यासा और बदहाल भी..

बेशक चोरी छोटी हो या बड़ी, चोरी तो चोरी ही है...सज़ा तो मिलनी ही चाहिए.. लेकिन दुःख तब होता है जब बड़े बड़े चोर जिन्होंने करोड़ों-अरबों अंदर किया होता है वे तो लूट के माल के साथ देश से बाहर ही भाग जाते हैं..कभी न लौटने के लिए ..और इन छोटे छोटे चोरों पर कईं कईं दफाएं लगा के इन्हें अंदर कर खस्सी कर दिया जाता है ...

ये तो हुए दो तरह के चोर .. लेेकिन और भी अनेकों तरह की चोरियां तो चल ही रही हैं, अब क्या क्या गिनाएं...अगर मैं चंद मिनट भी अपनी ड्यूटी पर देर से गया तो यह भी एक तरह की चोरी ही हुई ...है कि नहीं?

 कुछ साल पहले एक किस्सा सुना था (यह सच बिल्कुल नहीं है) ...एक महिला अधिकारी अपने सीनियर के घर Courtesy visit के लिए गई तो उस के लिए एक रेडीमेड कमीज ले गई ..उसे दरअसल देश के एक कोने से दूसरे कोने में तबादला चाहिए था .. और कुछ ही दिनों में उस का यह काम हो गया...कहते हैं (सुनी सुनाई बात है!) कि जब लोग उस से पूछते कि इतनी आसानी से यह कैसे हो गया, तो वह हंसते हुए कहती कि सर को मिल कर आई थी, एक लूईस-फिलिप्स की शर्ट ले गई थी..

अब दूसरा किस्सा सुनिए...(यह भी बिल्कुल सच नहीं है)...एक अधिकारी को एक शहर से दूसरे शहर में तबादला चाहिए था ..यह किस्सा पांचवे  वेतन आयोग के एरियर के भुगतान के दिनों का है ..कहने वाले कहते हैं, दोस्तो, कि उस का तबादला करने वाला उस का सारा एरियर निगल गया ...निगल गया मतलब कि उसे जा कर वह सारा पैसा उस को दक्षिणा के रूप में देना पड़ा..तब कहीं जाकर उस का काम हो पाया..

और एक किस्सा सुनिेए...(यह भी सच नही है) ...एक अधिकारी को बार बार लोगों की बदली करने और बाद में रद्द करने का चस्का लग गया...पहले तो वह अपने दलालों के जरिए यह फीलर्ज़ भिजवा देता कि फलां फलां जगह जाना चाहोगे...अब समझदार और प्रैक्टीकल लोग तो तुरंत दान-दक्षिणा लेकर उस के पास पहुंच जाते .. जो बेवकूफ होते, वे चुपचाप रहते और उन के तबादले के आदेश जारी हो जाते और फिर उन को निरस्त करवाने के लिए उन की दक्षिणा भी ज़्यादा देनी पड़ती और जिल्लत भी सहनी पड़ती ..

ये सब धंधे फिट है ंआजकल, ऐसा सुना है, मैं नहीं कह रहा हूं....ऐसे ही किस्से हैं, ..लोग तो कुछ भी मनघडंत बातें फैला देते हैं...लोगों का क्या है!!

लेकिन यह तो दोस्तो आप भी मानोगे कि छोटी चोरी वाले की बजाए बड़ी चोरी करने वाले ज्यादा अकलमंद, ज़्यादा शातिर, ज़्यादा खुराफाती, कहीं ज़्यादा दुष्ट होते हैं.... लेेकिन हाल छोटे मोटे चोर की ऐसी होती है ...देखते हैं आप भी मीडिया में कि किस तरह से एक बार ऐसा छोटा मोटा चोर पकड़ा जाए तो सारी पब्लिक उस पर  अपनी मर्दानगी की छाप छोड़ देना चाहती है .. मार मार के लहुलूहान कर देती है अलग ...पुलिसिया कार्रवाई सो अलग ...या तो एक काम कर लो, अगर लहुलूहान कर ही दिया है तो यह भी एक सबक है, छोड़ दीजिए उसे ....लेकिन कानून अपने हाथ में लेने का भी हक किसी को भी नहीं है ...

हां, तो मैं उस नौ-दो ग्यारह हो गये चोर की बात कर रहा था, मुझे कैसा लगा?... छोड़िए, क्या करेंगे जान कर ...कुछ बातें लिखने और बोलने में अच्छी नहीं लगतीं...आप भी चुपचाप इत्मीनान से इस गीत के बोलों में रम जाइए...वैसे तो आपने भी राजेश खन्ना-मुमताज की फिल्म रोटी बहुत बार देख ही रखी होगी....