शुक्रवार, 10 जून 2016

चीनी चीज़ों से आखिर इतनी रुसवाई क्यों!

मुझे यह कभी समझ नहीं आया कि यह रुसवाई क्यों है आखिर...हम लोग इतनी सारी चीन की बनी चीज़ें इस्तेमाल करते हैं, फिर भी चीन के बाज़ार को कोसते ही रहते हैं...मुझे लगता है शायद हम लोगों को उस की व्यापक मार्कीट से कहीं न कहीं ईर्ष्या भी होती होगी!

इतनी व्यापक मार्कीट है ..तो है...हमें खुशी खुशी यह स्वीकार करना चाहिए...वैसे भी हम लोग एक वैश्विक गांव - Global village में ही रहते हैं...सारा आकाश अपना है, जितना समेटना चाहें, समेट लीजिए, कौन रोक रहा है..

अच्छा, लोग भी खरीदते समय अपना अच्छा बुरा सब समझते हैं.. इतने competitive rates पर और कहीं से वैसा कुछ नहीं मिलता या ऐसा कोई दूसरा ऑप्शन नहीं है, इसलिए वे चीनी चीज़ें खरीद लेते हैं खुशी खुशी...

और एक बात ..इन चीज़ों के रेट अधिकतर इतने कम होते हैं कि दुकानदार से यह पूछना भी एक बेवकूफ़ी लगती है कि भाई, यह कितना समय चलेगी... वैसे उन का भी डॉयलाग सैट है ...चीनी है, कोई गारंटी है, जो है आप के सामने..हमें तो दस रूपये मिलने हैं!

कुछ चीज़ों की उदाहरण दूंगा.. मुझे अभी बैठे बैठे ध्यान आया कि हम लोगों के घरों में बहुत सी चीज़ें चाईनीज़ ही हैं...अकसर ये मोबाइल-लैपटाप, चार्जर भी वहीं कहीं या आसपास ही तैयार हुए होते हैं...उसदिन ए.सी के बारे में पता चला कि ये भी चाईनीज़ आ रहे हैं, चीनी रेडियो-ट्रांसिस्टर तो हर नुक्कड पर धड़ाधड़ बिक ही रहे हैं...जी हां, लिस्ट कभी खत्म नहीं होने वाली...आप भी सोचिए आप के आसपास क्या क्या चाईनीज़ है!

यह जो मैंने रैकेट की तस्वीर लगाई है ..यह हमारे यहां हर बैड-रूम में है...आज कल तो मच्छर थोड़े कम ही हैं...लेिकन पिछले महीनों ढीठ किस्म के मच्छरों के लिए भी Multi-strategy अपनानी होती थी...शाम के समय स्प्रे करने के बंद कमरा बंद करना, उस के बाद गुडनाइट कॉयल लगा देना...इस के बावजूद भी बिस्तर पर लेटते हुए उन पांच सात मच्छरों का आतंक जब हद से गुज़र जाता है रोज़ाना तो फिर इस रैकेट को पकड़ कर हम लोग अपने आप को कितना बड़ा एचीवर (achiever) मानते हैं...

और यह सब किस कीमत पर?.... महज १६०-१७० रूपये में आने वाला रैकेट कितने काम है ..लेकिन दुकानदार एक बार चला कर दिखा देता है...बस, जैसा कि पहले बताया कि कोई गारंटी वांटी नहीं, वह साफ कह देता है पहले से..और इस की नियमित चार्जिंग करनी होती है ..

अब बात करते हैं दीवाली पर यूज़ होने वाली सजावटी लड़ियों की ..पीछे कुछ ऐसा अभियान सा चला था कि आप लोग दीए खरीदा करो...अपने कुम्हारों को भी कुछ मिलना चाहिए...बिल्कुल सही बात है, मानता हूं, उन के भी उत्पाद बिकते ही हैं.. .Of late, they have also become quite innovative! ..लेकिन हकीकत यह है कि खरीदार वह ही खरीदता है जिस में उस का फायदा है ...चीन ने हिंदोस्तान के घर घर में लड़ियां पहुंचा दीं....४०-५० रूपये में ...मोमबत्ती के दाम में बिक रही लड़ियां-झालरें कौन नहीं खरीदना चाहेगा! ... उन दिनों मैं लोगों को बीस बीस लड़ियां एक साथ खऱीदते देखता हूं.. उन हाकरों ने भी रटा हुआ है जुमला..कोई गारंटी नहीं, यहां चला कर देख लीजिए.....

हां, अब आ रहा हूं एक और ज़रूरी चीज़ पर...आज कल साईकिल का बहुत बोलबाला है ..हम लोग चलाने लगे हैं...लेिकन हवा तो चाहिए...लेिकन हवा भरवाने की सिरदर्दी भी कुछ तो है ही ...जिस समय मे हम सब लोग जो शौक के तौर पर सुबह साईकिल निकालते हैं उस समय साईकिल की दुकानें खुली नहीं होतीं...शाम के समय बार बार कौन जाए ..बहुत ट्रैफिक होता है ...इसी चक्कर में कहूं या इसी बहाने की वजह से मेरी सुबह की साईक्लिंग हफ्ता-दस दिन बीच बीच में रुक जाया करती थी ...लेकिन अब नहीं...

क्यों, अब क्यों नहीं?...क्योंकि अब मैंने भी एक चाईनीज़ पम्प खरीद लिया है ...मुझे एक बार मेरा एक मरीज़ ही बता गया था..यह १०० रूपये में बिकता है ..और एक मिनट से भी कम समय में हवा भर देता है ...बड़े आराम से, बिना किसी जोर के यह चलता है बड़ी सुगमता से...बहुत बढ़िया ...कुछ दिन पहले ही खरीदा है, उस दिन से साईकिल में हवा ठीक रहती है ..वरना तो कम हवा वाले साईकिल चलाने की क्या सिरदर्दी होती है ये तो वही जानते हैं जो यह काम कर चुके हैं!

ऐसा नहीं है कि पहले पंप नहीं थी..थे स्वदेशी पंप भी ...लेिकन उस में वॉशर का झंझट, कुछ दिन न इस्तेमाल करिए तो वह सूख जाती है...फिर उसे खोलो..प्रपंच करो, उसे फैलाओ....और वैसे भी इन पंपों को चलाना अब छोटी मोटी पहाड़ी पर चढ़ने जैसा लगता है...

हां, आज साईकिल से बात कुछ याद आ रही है... मैं अकसर बहुत से लोगों के साईकिल पर चलने की बातें यह शेयर करता रहता हूं.. अभी मैं अपना ब्लॉग सर्च कर रहा था...साईक्लिंग लिख कर ...मैं स्तब्ध रह गया ...दर्जनों साईक्लिस्टों की प्रेरणात्मक बातें दर्ज मिलीं....मैंने at random कुछ को देखा (पढ़ा नहीं, इच्छा नहीं होती, यह भी मेरी एक अजीब बीमारी है..) और उन के लिंक यहां लेख के बाद य़हां शेयर कर रहा हूं...आप इन में से किसी पर भी क्लिक कर के उसे देख सकते हैं....कम से कम एक बार तो देख ही सकते हैं..

हां, आज मैं अपने नाना जी के छोटे भाई की बात करूंगा..आज सुबह पता चला कि वे भी ८२ साल की उम्र में साईकिल चलाते हैं तो बहुत अच्छा लगा...बहुत खुशी हुई....बच्चों ने उन की एक छोटी सी, प्यारी सी वीडियो भी डाली है जिसे में इस पोस्ट में एम्बैड कर रहा हूं...

जनाब जगदीश चन्द्र जी बसूर भाखड़ा ब्यास बोर्ड से चीफ़ इंजीनियर के पद से रिटायर हैं...लगभग २५ साल हो गये हैं...बहुत ही साधारण जीवन और सोच बहुत ऊंची...संयमित जीवन...पढ़ाई में बहुत उपलब्धियां हैं...आज मुझे इन के मैडल की यह तस्वीर दिख गई ..साथ में चाची जी हैं... यह दंपति बहुत सहृदय हैं.. मस्त रहते हैं...खूब हंसते मुस्कुराते हैं...इन से मिल कर हमेशा अच्छा लगता है ...चाचा जी ने बंबई से इंजीनियरिंग की है ...सर्विस के दौरान इन की पोस्ट की वजह से इन के बहुत ठाठ-बाठ थे...अब भी हैं ...लेकिन इन्हें किसी पर निर्भर रहना पसंद नहीं है...यहां तक कि सुबह सुबह अपनी माडुलर किचन में अपना नाश्ता भी स्वयं बनाना भाता है...I like him very much because of his childlike innocence, inquisitiveness,  enthusiasm and cool temperament! जब भी मेरी मां और ये मिलते हैं तो अकसर अपने बचपन को याद कर के खूब ठहाके लगाते हैं...calling each other by their first names...'Jagdish' and 'Santosh'. God bless!


During his tenure as Chief Engr of Bhakra Beas Management Board
इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि वे किस तरह से अपने ग्रैंड-चिल्ड्रन को साईक्लिंग के प्रैक्टीकल पाठ पढ़ा रहे हैं...बहुत अच्छा लगा इन्हें बच्चों के साथ बच्चा होते देख कर .. आज कल यह चंडीगढ़ में रहते हैं और रोज़ सुबह साईक्लिंग के लिए निकल जाते हैं...

साईक्लिंग पर लिखे कुछ लेखों के लिंक ये हैं..>>>>>

अब गाना बजाने की बारी है..कंफ्यूजन है ...हिंदी चीनी भाई भाई पर या साईक्लिंग पर कुछ हो जाए...सोचता हूं... चलिए, यही ठीक है ..