बुधवार, 8 जून 2016

लेखन में पैसा-वैसा कुछ है नहीं!

कल मैंने एक लेख लिखा था कि लिखना शुरू कैसे करें?...चलिए, आप ने नहीं देखा, अच्छा ही किया...😊😊

आज मुझे ध्यान आ रहा कि लेखन को एक प्रोफेशन बनाने से पहले अच्छे से सोच-समझ लेना चाहिए..एक हॉबी के तौर पर, एक तफरीह के लिए लिखना ..या आप के पास कुछ ऐसा है जो आप दुनिया से बांटना चाहते हैं...बिल्कुल वही सूर्य की रोशनी वाली बात...तो आप बस लिखते रहिए...ऐसे ही ...लेिकन राशन पानी लेखन से चल पाए...मुझे नहीं लगता, होंगे कोई विरले जो यह काम कर लेते होंगे...उस के लिए लेखन के साथ जुगाड़ू प्रवृत्ति होना भी लाजमी है..

जो बातें शेयर करता हूं ...कोई झूठ वूठ न ही लिखता हूं..न ही ज़रूरत है..लेकिन इतना ध्यान अवश्य करता हूं कि जिस बंदे ने जो बात मेरे को गोपनीय से बताई है मैं कुछ भी हो जाए उस को धोखा नहीं देता, चाहे कुछ भी हो जाए...बस, एक यही अच्छी आदत है ...मरीज़ों की बातें बहुत सी शेयर करता रहता हूं इस ब्लॉग में लेिकन गारंटी है कि अगर कोई मेरी पोस्टों को पढ़ कर किसी को पहचान पाए.....हां, कुछ हट्टे-कट्टे बुज़ुर्गों की फोटो ज़रूर लगा देता हूं क्योंकि उन्हें भी अच्छा लगता है और मुझे भी आप को टहलने के लिए प्रेरित करने के लिए कुछ तो मसाला चाहिए होता है..
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एक ३५-४० के आदमी से मुलाकात हुई...(कहां हुई, कैसे हुई... रहने दें) ..मैंने पूछ लिया कि आप क्या करते हैं...कहने लगा कि मीडिया में हूं...मीडिया में आदमी क्या है, क्या नहीं है, यह किसी से दो बातें कर के पता चल जाता है ...अच्छे से...फिर वह बंदा कहने लगा कि मैं किताबे भी लिखता हूं..मुझे अच्छा लगा..

मेरे कहने पर वह अगली मीटिंग में अपनी एक किताब ले आया...यह किताब क्या थी, चाटुकारिता का एक ग्रंथ था...मुझे कवर देख कर ही बात समझ में आ गई...लेकिन उस पर उस का नाम कहीं नहीं लिखा था..बताने लगा कि जिस आदमी का नाम उस किताब पर है उससे उसे पचास हज़ार रूपये मिले हैं....मुझे इतनी खुशी हुई कि मैं ब्यां नहीं कर सकता...मैंने उस की पीठ थपथपाई ...इसलिए कि अब हिंदी के लेखकों में इतना दम होने लगा कि वे भी इतनी बड़ी रकम पा सकते हैं...

जी हां, वह शख्स गोश्त-राइटर था (Ghost writer) ...भूतलेखक कहते हैं इसे ..अभी फ़ादर कामिल बुल्के की अंगरेजी हिन्दी कोश से देखा है ... इस में क्या होता है किसी रचना को लिखता कोई और है ..लेिकन उस का नाम कहीं नहीं होता, उसे बस अपना मेहनताना लेकर किनारा कर लेना होता है...

बंदा बता रहा था कि उसने सात के करीब किताबें लिख दी हैं इस तरह से ...हर एक के चालीस-पचास हज़ार रूपये मिल जाते हैं....मैं उस की इस उपलब्धि पर बहुत खुश हुआ ...सिर्फ इसलिए कि मैंने अपने नाना जी की गोश्त राइटिंग के बारे में भी सुन रखा है, उन के बारे में भी अभी बताऊंगा...इत्मीनान रखिए...

हां, उस बंदे की किताब में २०० के करीब किसी लीडर की तस्वीरें थीं, टनाटन ग्लॉसी पेपर पर... एक अच्छे पब्लिशिंग हाउस ने किताब प्रकाशित की थी...ज़ाहिर है उस छापने वाले की भी सेवा की गई होगी ...बीच बीच कुछ लिखा था...लिखा क्या था, तारीफ़े के पुल बांधे गये थे..

वह मुझे कहने लगा..कैसी लगी?...मैंने कहा..बहुत अच्छी है.. क्योंकि मैं उस के श्रम की अपने नाना जी के श्रम से तुलना कर रहा था...और मुझे अच्छा लग रहा था कि जैसे इस माई के लाल ने मेरे नाना जी का बदला लिया है दुनिया से ...at times, how irrational thinkers we become so foolishly! Anyway, fact is fact! ...कहने लगा रखेंगे पढ़ने के लिए?....मैंने कहा ..नहीं, देख तो ली है..आप के काम आ जायेगी...मैंने इसलिए नहीं ली किताब की पढ़नी मैंने है नहीं, बिना वजह मैं घर में मौजूद दुनिया के लगभग सभी विषयों पर उपलब्ध सैंकड़ों किताबों में इसे कहां घुसाऊंगा...पहले ही घर में गालीयां पढ़ती रहती हैं ...किताबों के बढ़ते अंबार की वजह से! 

नाना जी, श्री देवी दास जी बसूर 
मेरे नाना जी, स्व. देवी दास जी बसूर, उन्हें विभाजन के बाद Pak-occupied Kashmir (PoK) से अंबाला आ कर रहना पड़ा...शुरू शुरू में १९४७ के बाद कुछ समय के लिए वह जालंधर में एक अखबार में सब-एडीटर रहे ..लिखने पढ़ने का शौक तो था ही ... उर्दू का अखबार था... कुछ अरसे बाद वे लुधियाना में किसी रईस के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगे ..उस रईस ने उन्हें रहने के लिए जगह भी दे दी थी..लेकिन यह सिलसिला चल नहीं पाया...सारा परिवार अंबाला में था...इसलिए कुछ समय बाद इन्होंने अंबाला में ही ट्यूशनें पढ़ानी शुरू कर दीं... 

हम लोग जाते तो देखते कि वह सुबह और शाम चार -पांच बच्चों को ट्यूशन दिया करते थे.. गणित और इंगलिश के बहुत अच्छे ट्यूटर थे..वे तो कभी नहीं बताते, लेकिन नानी को पूरा पता रहता था कि शहर का कौन सा निकम्मा और नालायक बच्चा कैसे इन के पास आकर अच्छे अंकों में पास हो गया... नानी को उन बच्चों के मां-बाप बताया करते थे...इस चक्कर में अपनी नानी की भी तूती बोलती थी...अच्छी बात है ...

लेकिन उन का एक दोस्त था, नाम नहीं लिखूंगा.....आठवीं ,दसवीं कक्षा में हम लोग हिंदी की किताब पढ़ते तो मेरी मां बता दिया करती कि यह तो तुम्हारे नाना का दोस्त है ...वह बहुत मशहूल लेखक था...फिर हमें धीरे धीरे पता चला कि उस लेखक के लिए मेरे नाना जी गोश्त-राइटिंग करते थे...बिल्कुल यारी दोस्ती में या कभी कुछ थोड़ा बहुत वह दे दिया करता था... नाना जी उर्दू में कहानियां लिखा करते और वह उन्हें हिंदी में अनुवाद कर के अपने नाम से छाप दिया करता ... धीरे धीरे वह बंदा तो बहुत बड़ा आदमी बन गया...

लेकिन अपने नाना जी हमेशा तंगहाली में ही रहे......लिखते हुए थोड़ा असहज लग रहा है...लेिकन उन्होंने जिंदगी पूरी सादगी और ईमानदारी से ..अपने बलबूते पर जी.....बहुत शांत थे... खाना-पीना एक दम सीधा-सादा...सफेद कमीज और पायजामा हमेशा... पढ़ने के शौकीन ..अखबारें और पत्रिकाएं पढ़ते रहना ..ज़्यादा बात नहीं किया करते थे..उन की बैठक में हम लोग जाते तो बस हमें देख कर मुस्कुरा दिया करते ...

क्या आप यकीं करेंगे कि कोई इंसान ८०-८२ साल की उम्र तक ट्यूशनें पढ़ाता रहा हो...हमनें उन्हें कभी बीमार नहीं देखा...लेकिन बढ़ती उम्र के साथ ट्यूशनें आनी कम हो गईं...मुझे अच्छे से याद है हमारा भी उन से ऐसा लगाव कि उस उम्र में उन के ट्यूशन वाले छात्रों की संख्या कम होते देख कर मुझे बहुत बुरा लगता...कारण आप समझ ही सकते हैं! लेकिन यह मुझे पता है कि पढ़ाते बहुत ही अच्छा थे...इंगलिश और गणित पर मास्टरी, कोई जवाब ही नहीं। 

अच्छा, वापिस उस भूतलेखक की तरफ़ आता हूं...जिसने कुछ पन्ने लिख कर ...५० हज़ार रूपये का जुगाड़ कर लिया.. मुझे खुशी हुई ...मैंने उसे इतना तो कहा ..कि क्या उसे पता है कि ५० हज़ार रूपये में आपने उस व्यापारी का कितना बड़ा काम कर दिया है ... सोचने लगा, फिर कहने लगा कि हां, मैं सब समझता हूं ..इस किताब के बलबूते वह अपने लाखों के काम करवायेगा...क्या करें, अपनी इच्छा अनुसार पैसे मांगे भी तो नहीं जा सकते। 

मैंने फिर भी कहा ...नहीं, यार, कोशिश तो करो...अगली बार यह राशि बढ़ा दो....पता नहीं मुझे क्यों लग रहा था मैं अपने नाना जी को मिलने वाले कम पैसों का बदला ले रहा था...उसे अपनी राशि बढ़ाने के लिए कह कर ...how foolish of me! Isn't it?

I love this song so very much!! ...particularly the lyrics and the geat great Dada Muni..