शुक्रवार, 1 अप्रैल 2016

और लोग कितनी आसानी से कह देते हैं कि लत छूटती नहीं...

जैसे ही मैंने शीर्षक में यह शब्द लिखा..कितना आसान...तुरंत बरसों पुराना यह गीत याद आ गया...कितना आसां है कहना भूल जाओ...इस पोस्ट को लिखने से पहले ज़रा इत्मीनान से उसे देख सुन लूं...

हां, मैं बात कर रहा था किसी लत को छोड़ने की ... परसों-नरसों एक इंस्पेक्टर से मुलाकात हुई...६५ के करीब की उम्र है। मुंह का निरीक्षण करते हुए मैंने गुटखे-पानमसाले के इस्तेमाल के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि ये तो नहीं लेकिन पान वान सब कुछ एक ही झटके में एक िदन छूट गया..

इस तरह की आपबीती सुनने को हमें अकसर मिलती नहीं...हमें तो वही घिसी-पिटी बातें रोज़ सुनने को मिलती हैं कि क्या करें, अब तो यह लत साथ ही जायेगी, बिना इस को पिए पेट साफ़ नहीं होता, बेचैनी होने लगती है, रात की शिफ्ट की ड्यूटी है इसलिए इस के बिना रह नहीं पाते...क्या करें, पान-वान सब मजबूरन खाना पड़ता है क्योंकि हर समय गंदगी को हटाने का काम है ...इसे खाए बिना तो हो ही नहीं पायेगा । 

कुछ दिन पहले हिंदी की अखबार में भी एक अच्छा लेख किसी ने लिखा कि कईं बार बरसों पुरानी खराब आदतों को बस एक वाक्या छुड़वा देता है ..एक बंदे की आपबीती लिखी थी जो पान खाने का बहुत शौकीन था..बरसों से...एक बार किसी शादी में नये कपड़े पहन कर गया...पान थूकने वॉशरूम में गया...नये कपड़ों पर पान के लाल लाल छींटे देख कर इस लत से ऐसी नफ़रत हुई कि उस दिन के बाद इसे छुआ नहीं। 

लेकिन परसों वाले बंदे की बात कुछ अलग थी, उसने केवल पान ही नहीं, सब कुछ ..दारू, पान, सिगरेट सभी कुछ एक दिन अचानक छोड़ दिया था ..आज से १५ वर्ष पहले...

ज़ाहिर है जब कोई ऐसी बात करता है तो जिज्ञासा होती है जानने की आखिर यह कैसे संभव हो पाया....क्योंकि हमें फिर उस के अनुभवों को आगे भी बांटना होता है ..

इन इंस्पैक्टर साहब ने बताया मैं इस सब खाने पीने वाली चीज़ों का इतना आदि हो चुका था कि मुझे इन की बुराई के बारे में सोचने की फुर्सत ही नहीं थी.....

"सिगरेट मैं लगभग ४० रोज़ पीता था, तंबाकू वाला पान खाने की तो कभी गिनती ही नहीं की ...बस, खाना खाने और रात को सोने से पहले उसे थूकना मजबूरी थी, दारू पीने लगता तो निरंतर ४-६ घंटे पीता ही रहता ...इतना आदि हो चुका था कि दारू का भी कि पांच छः पीने के बाद भी आराम से ड्यूटी भी करता था, किसी को भनक तक न लग पाती थी कि दारू पिए हुए हूं...पड़ोसियों तक को नहीं पता था कि मैं शराब पीता हूं..." 
" पंद्रह वर्ष पहले एक सेमीनार में जाने का अवसर मिला...वहां पर एक आई.जी रैंक के अधिकारी को सुनने का मौका मिला..उन की एक बात मन को छू गई कि आज कल लोग नशे की आदत में डूब कर बच्चों के भविष्य से खेल रहे हैं...आई जी ने आगे कहा कि एक ही काम हो सकता है या तो आप शराब,दारू, सिगरेट, पान का मज़ा लूट लें या बच्चों को अच्छी शिक्षा-दिक्षा दिला लें..."

 बस, इस बात का इन के मन पर इतना गहरा असर हुआ कि उसी दिन से सब कुछ त्याग दिया...मुझे इन की बात बेहद प्रेरणात्मक लगी, इसीलिए इसे ब्लॉग पर शेयर करने का मन हुआ। बताने लगे कि मेरे भी बच्चे उन दिनों आज से १५ वर्ष पहले छोटे थे, मुझे भी लगा कि अगर इन्हें आगे अच्छी शिक्षा दिलानी है तो पैसे और सेहत की बरबादी आज ही से रोकनी पड़ेगी...

मेरे यह पूछने पर कि एक ही दिन एक ही झटके में आप ने यह सब छोड़ तो दिया तो आप को क्या कुछ तकलीफ़ हुई...उन्होंने तपाक से पूरे ज़ोर से कहा ....डाक्साब, मेरे को कुछ भी परेशानी नहीं हुई ..क्योंकि मेरा इरादा बिल्कुल पक्का था...उस के बाद बच्चों की पढ़ाई लिखाई की तरफ़ पूरा ध्यान दिया...सभी बच्चे आज ऑफीसर लगे हुए हैं...

आप को कैसे लगी  इन इंस्पेक्टर साहब की बात...हां, एक बात और उन्होंने शेयर करी...बताने लगे कि मैंने अपनी बात सुना सुना कर कुछ लोगों की ऐसी आदतें छुड़वा दीं, कुछ ने मेरी बात सुन कर कम कर दिया ...यहां तक कि शहर के एक नामचीन डाक्टर का भी पान छुड़वा दिया....लिखना तो मैं उस किस्से को भी चाह रहा हूं लेकिन आप भी बोर हो जाएंगे... और मैं भी। वैसे भी किसी भी चीज़ की खुराक जब ज़रूरत से ज़्यादा हो जाये तो फिर आप को पता ही है कि क्या होता है!

हां, तो दोस्तो मैंने इन इंस्पेक्टर साहब से दो बातें ग्रहण कीं...सच बताऊं मैं किसी किसी दिन बहुत बोर हो जाता हूं वहीं बातें मरीज़ों को समझाते समझाते ...मुझे लगता है कि पाउच पर सब कुछ लिखा रहता है भयानक किस्म की तस्वीरों के साथ...फिर भी यार ये मान ही नहीं रहे। लेकिन इन की आपबीती सुनने के बाद यह विश्वास और भी पक्का हो गया कि अगर एक गैर-मैडीकल इंसान की बात सुन कर इन की लाइफ में इतना बदलाव आ गया... तो फिर हम लोगों का तो धर्म ही यही है लोगों को अच्छे बुरे का फ़र्क समझाना...

दूसरी बात जो उन्होंने कही कि इन सब चीज़ों को छोड़ने के बाद न तो उन्हें कब्ज हुई, न सिरदर्द और न ही बेचैनी...इस बात को नोट कर लें आप सब भी ...मैं भी अकसर मरीज़ों को कह दिया करता था कि आप जब इस लत को लात मारेंगे तो पांच सात दिनों की तकलीफ की बात है , थोड़ी सी तकलीफ़ हो सकती है, लेकिन उस का भी समाधान है....अब मैं इस बात को नहीं कहूंगा ...क्योंकि इस बंदे के अनुभव मेरे सामने हैं......और हो सका, तो मरीज़ों को इस पोस्ट का एक प्रिंट-आउट ही थमा दिया करूंगा...बस, आप से इतनी गुज़ारिश है कि कम से कम इस पोस्ट को उस बंदे तक पहुंचा दें जो ये सब चीज़ें छोड़ना चाहता है ....

दरअसल हमें खुद पता नहीं होता कि हमारी कौन सी बात किसे कब छू जाए....ध्यान आ गया आठ दस पहले स्वपनदोष पर लिखी एक पोस्ट का .....दिल से लिखी थी...स्वपनदोष जब कोई दोष है ही नहीं तो। (एक बार किसी पोस्ट को लिखने के बाद मैं उस से कभी छेड़छाड़ नहीं करता...यह उस दिन की मनोस्थिति ब्यां करती है, इस पोस्ट को भी मैंने कभी  एडिट करने की कोशिश नहीं की....वही आठ साल पुरानी वैसी ही है ) ...इसे हज़ारों युवाओं ने तो पढ़ा ही है और फिर वे मुझे आज तक थैंक्स का ई-मेल भेजते हैं कि उन का भार भी हल्का हो गया....बस, अभी तक की लेखन यात्रा से यही सीखा है कि जो कुछ भी ज्ञान ...बड़ा, छोटा, तुच्छ, तुच्छतम्---बस बांटते चलिए... आप के लिए तुच्छ हो सकता है, लेकिन पता नहीं पढ़ने वाले को उस की कितनी ज़रूरत है ..शायद वह उस की सोच, उस का नज़रिया या ज़िंदगी ही बदल दे....

शायद अब इस पोस्ट के लिफाफे को बंद करने का समय आ गया है ... थोड़ा टहल कर आता हूं... फिर आ कर इस पोस्ट के कुछ प्रिंट आउट लूंगा ..मैं इंस्पैक्टर साहब की बातों से उन के जज्बे से, उन की आत्मशक्ति से बहुत मुतासिर हुआ...कोई भी होगा, क्या आप नहीं हुए?....अगर हुए तो कमैंट बॉक्स में कुछ कह दिया कीजिए, उस के पैसे नहीं लगते! शायद मुझे आप से और भी बतियाने का मन करे। 

जाते जाते अमिताभ बच्चन का खाई के पान बनारस वाला यहां एम्बेड करने की इच्छा तो थी, लेकिन बहुत हो गया..सुन सुन कर अब ऊबने लगे हैं...अभी अपनी फिल्मी ज्ञान के घोड़े दौड़ाता हूं ...