गुरुवार, 11 मई 2017

पेड़ हैं तो हम हैं...फिर भी!

पसंद अपनी अपनी ...बेबी को बेस पसंद है, किसी को पशुओं के चारे में मुंह मारना पसंद है, किसी को स्कूली बच्चों को रोज़ाना मिलने वाले मिड-डे मील के चोगे में चोंच मारना पसंद है, जैसे इस सब से पेट न भरा है...कुछ पानी के टैंकरों के घपले के चुल्लू भर पानी में डूब मरते हैं, किसी को स्टैंट से मोटी कमीशन पसंद है और किसी को इस जहां से रुख्सत होने से पहले मरीज़ों की दवाईयों के फर्जीवाडे़ से पैसा जमा करना पसंद है ...कोई किसी का पेट काट कर जेब भर लेना चाहता है और कोई पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से कर माल कमा लेना चाहता है, किसी को वृक्षारोपण मुहिम के दौरान पेड़ों की संख्या में हज़ारों की हेराफेरी पसंद है .. इस लिस्ट को अाप चाहें जितना लंबा करते जाएं, यह खत्म होने वाली नहीं है...

पेड़ों से ध्यान आया ..एक तरफ़ तो पेड़ों को काटने वाला माफ़िया है ...और दूसरी तरफ़ पेड़ों से बेइंतहा मुहब्बत करने वाले फरिश्ते हैं..आज मैं अमर अजाला में एक ऐसी ही रिपोर्ट पढ़ रहा था ..पौधों की पूजा होती है और प्रसाद में बांटते हैं बीज..

अच्छा लगा यह सब पढ़ कर कि किस तरह से चंद्रभूषण तिवारी जी पेड़ों की सेवा करने की मुहिम चलाए हुए हैं...

बकौल तिवारी जी ...
"मेरा जन्म देवरिया के एक गांव में साधारण परिवार में हुआ था। प्राथमिक शिक्षा की पढ़ाई के लिए किताब-कापियों की जरूरत मेैं बाज़ार में नीम की निबौरी बेचकर पूरी करता था। अ से अमरूद और आ से आम की पढ़ाई मुझे पेड़ों के कल्पना-लोक में ले जाती थी. आम की गुठली से निकले पौधे और उनके फल देने की प्रक्रिया मुझे बचपन से ही रोमांचित करती थी।  
..... मैंने लखनऊ में बच्चों के लिए छह स्कूल खोले हैं। मैं गरीब बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देता हूं। हर घर में दान लेने के बदले वहां एक वृक्ष लगाकर रिश्ता जोड़ने की मुहिम शुरू की, जिसकी वजह से आज लोग मुझे 'पेड़ वाले बाबा' के नाम से पुकारते हैं।मैं स्कूलों में जा-जाकर गरीब बच्चों की शिक्षा देने के बदले में उनसे दस पौधे लगाने का वायदा लेता हूं।  
मैं इस मिशन में जब भी किसी शहर में जाता हूं, तो वहां के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के मस्तिष्क में भी पौधा लगा कर आता हूं। मैं वहां बच्चों को अपने सगे-संबंधियों को पौधे लगाने की अपील करते हुए चिट्ठी लिखने के लिए प्रेरित भी करता हूं। 
चूंकि धार्मिक मान्यताओं का असर समाज में व्यापक रूप से फैला है, इसलिए मैंने अपने पर्यावरण प्रेम को इसी से जोड़ा। मैं प्रति वर्ष अपने गृहजनपद के गांव में जाकर दुर्गा मंदिर में पौधों का भंडारा भी करता हूं। इस भंडारे के बाद में लोगों को प्रसाद के रूप में पौधे बांटता हूं। इसके साथ मैं हरा-हरि व्रत कथा के नए प्रयोग पर भी काम कर रहा हूं। इस कथा में पौधों की पूजा करके बीज को प्रसाद की तरह बांटता हूं.."
दुनिया भी टिकी हुई है इसी वजह से कि किसी की फितरत अगर पेड़ काटने जलाने की है तो और बहुतेरों का स्वभाव पेड़ों से मुहब्बत करने वाला है...पिछले दिनों पृथ्वी दिवस के अवसर पर अखबार ने उस लोगों को फोटो छापने की स्कीम चाहिए जो उन्हें किसी पेड़ के साथ अपनी शेल्फी भिजवा देंगे...

मुझे भी पेड़ों के साथ खड़े हो कर फोटो खिंचवाने का बेहद शौक है ... दिल की बात करूं तो मैं ऐसे ही टाइम-पास के लिए बहुत से विषयों पर कलम घिसाता तो रहता हूं ....लेकिन मेरा मन प्रकृति के नज़ारों की आलौकिकता के बारे में ही लिखने को करता है बस...मुझे यह सब मैडीकल-फैडीकल में लिखना पसंद नहीं है ... क्योंकि ३० सालों से इस सब से जुड़े होने के कारण कभी कभी कुछ मैं भी आंखों देखी बातें दर्ज कर देता हूं..

इस कायनात का हर पेड़ मुझे चकित कर देता है .. मैं पेड़ों को देख कर अचंभित हुए बिना नहीं रह पाता.. कितना पुराना होगा यह पेड़, कब और किसने लगाया होगा...यह बीते ज़माने की अच्छाईयों-बुराईयों का गवाह रहा होगा .. कितना सहनशील है यह पेड़, कितना परोपकारी और सहज है ... पत्थर मारने वाले को भी फल ही देता है!! बस मुझे ये सब बातें ही रोमांचित करती हैं , और कुछ नहीं....एक पेड़ के दो पत्ते भी एक जैसे नहीं है ..ऐसे में हम लोग कैसे छोटी छोटी बातों पर लोगों की तुलना करने पर उतारू हो जाते हैं !!



एक बाज़ार से मैं अकसर निकलता हूं और इस इतने बडे़ पेड़ को देखता हूं ...कईं बार सोचा कि इस का फोटो खींचूंगा ..लेेकिन झिझकता रहा ..कल बाज़ार में सन्नाटा था, एक ७५-८० साल का बुज़ुर्ग बाहर खड़ा था .. मैंने पूछा कि यह कब का है, तो कहने लगे कि यह तो हमें भी नहीं पता...हमारे पिता जी को भी नहीं पता था, उन से भी पीछे ज़माने वाले ही जानते होंगे ... आप देखिए किस तरह से इन की एक दुकान इस पेड़ के पीछे पहुंच चुकी है ...लेकिन इन्होंने कैसे इस पेड़ को आंच नहीं आने दी.. ऐसे लोग उन लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं जिन्हें तो बस किसी न किसी बहाने पेड़ों को काटने-छांटने का बहाना चाहिए होता है ..वैसे आप लोगों का उन के बारे में क्या ख्याल है जो जाड़े के दिनों में पेड़ों की छंटाई इसलिए करवा देते हैं ताकि आंगन तक धूप पहुंचने का रास्ता साफ़ हो सके... (मैंने तो क्या कहना है, हमारे घर में भी यह सब होता रहा है....यही नहीं, कहीं भी दीवार के पास पीपल आदि का नन्हा-मुन्ना पेड़ देखते ही उसे सजाए मौत की सजा सुनाने और काटने-कटवाने के गवाह हम भी हैं...ताकि वर्षो बाद उस की जड़े नींव में घुस कर हमारे ताजमहल को हिला न दें!!)

मिट्टी गारे के ऐेसे थडे़ पेड़ों की ठंडक को चार चांद लगा देते हों जैसे ..

एक बात और ...हम अकसर देखते हैं कि पेड़ों के आस पास लोग कंक्रीट के प्लेटफार्म से बना देते हैं... ऐसे लगता है जैसे पेड़ों का गला दबा दिया हो किसी ने ...लेकिन इस तरह के मिट्टी के प्लेटफार्म जैसा कि मैं अपनी सोसायटी में देखता हूं या किसी गांव में देखता हूं...बहुत बढ़िया है .. अगर प्लेटफार्म बनाना भी है तो तो थोड़ा हट कर बनाया जा सकता है जैसा कि आप इस पेड़ के आसपास देख रहे हैं..चालीस-पचास लोगों को ठंड़क देता यह बट-वृक्ष.. मुझे ऐसे पेड़ बेहद रोमांचित करते हैं... खामखां मेरा दाखिला बीडीएस में हो गया....मैं नहीं करना चाहता था यह कोर्स....बस, पिता जी के सहकर्मी ने उन्हें बताया कि यह कोर्स करने से नौकरी मिल जाती है ...और मुझे बीडीएस क्लास में बिठा दिया गया... मेरा मन तो बॉटनी (वनस्पति विज्ञान) पढ़ने में ही था .. लेकिन ... जैसे तैसे मन लगा ही लिया ...पहले एक डेढ़ साल तो किताबों को हाथ लगाने का मन ही नहीं किया...लेकिन जब रुचि बनी, मैडल मिलने शुरू हो गये, यूनिवर्सिटी में टॉप करने का तुक्का लग गया तो फिर ध्यान उधर ही लगा लिया...और नौकरी ..एक नहीं, कम से कम दस मिल गईं एक साथ... इंंडियन ऑयल, रेलवे, एचएमटी, सीआरपीएफ, आर्मी, ईएसआईसी, टीचिंग वगैरह, स्टेट मैडीकल सर्विस में...लेकिन बात वही समझदार कौवे वाली ही हुई मेरे साथ भी!!

मैं भी किधर से किधर निकल गया, यही मेरी समस्या है ....बातें बहुत सारी हैं कहने सुनने को ...


कल दोपहर अमौसी एयरपोर्ट के बाहर इस पेड़ के नीचे एक घंटे बैठ कर मैं पढ़ता रहा .. बहुत अच्छा लगा ..

हमारी सोसायटी में एक ब्रिगेडियर साहब अपने घर के सामने पेड़ कर एक इस तरह का संदेश लिख कर रोज़ लगा देते हैं..सुबह टहलने वाले बड़े चाव से उस संदेश को पढ़ते हैं....कल का संदेश यह था .. आप भी पढ़िए.. यह पढ़ कर एक बार फिर यही लगा कि हम लोग अपने ही देश को कितना कम जानते हैं! 



परसों ड्यूटी पर आते हुए इस पेड़ को देखा .. लोग आज कल कहीं भी आग लगा देते हैं... झाड़ियों में किसी ने आग लगाई होगी...उस चक्कर में यह निर्दोष भी पिट गया .. बुरा लगा यह देख कर ..


रास्तों की सारी रौनक पेड़ों से ही जुड़ी हुई है ं...सुनसान रास्ते जिस पर पेड़ नहीं होते, कितने डरावने दिखते हैं...और होते भी हैं...जलती-भुनती दोपहरी में दूर से एक पेड़ जब दिख जाता है तो कितना सुकून मिलता है ...यह हम सब अनुभव करते हैं...अपने साईकिल से लेकर मोटर वाहन तक को किसी छायादार पेड़ के नीचे ही रखना चाहते हैं...

तलाशते हैं ऐसे छायादार पेड़ों को ..काश, हम इन को लगाने में और इन की परवरिश में भी इतनी ही रूचि ले पाएं!


 और यह रहा मेरा आज का सुप्रभात संदेश आप सब के लिए...आप का आज कल से बेहतर हो..
ईश्वर ने आप को  बिना कारण प्रसन्न रहने की सभी वजहें पहले ही से दे रखी हैं!!

आज की यह गीत भी कुछ मिलता जुलता संदेश ही दे रहा है ....मधुबन खुशबू देता है ...सागर सावन देता है ..जीना उस का जीना है, जो औरों को जीवन देता है .. 




4 टिप्‍पणियां:

  1. चन्द्रभूषण तिवारी जी का कार्य प्रेरक है. आपका पेड़ो के प्रति लगाव देखकर दिल गद गद हो गया.प्रेरक पोस्ट.

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’ओ बुद्ध! एक बार फिर मुस्कुराओ : ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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    1. धन्यवाद, सेंगर जी...पोस्ट देखने के लिए और आगे शेयर करने के लिए...साधुवाद.

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