रविवार, 11 सितंबर 2016

डूबो या मरो, लेकिन घर खरीदने वालों का पैसा लौटाओ

दो तीन दिन पहले मैं कुछ घंटों के लिए दिल्ली में था...कईं दिन से अखबार नहीं देखी थी, अखबार खरीदी और मैट्रो में बैठ कर जैसे ही पढ़ने के लिए पहले पन्ने पर नज़र टिकी तो मेरा तो दिन बन गया...

सुप्रीम कोर्ट के इतने बढ़िया बढ़िया फैसला आ रहे हैं ..आम आदमी के हितों की रक्षा के लिए...

नोएडा के एक बिल्डर को फटकार लगाई सुप्रीम कोर्ट ने कि तुम्हारी हालत कैसी भी है, हमें कुछ लेना देना नहीं उस से ...बस, तुम डूबो या मरो, लेकिन मकान खरीदने वालों का पैसा वापिस करो..

लोग कहते हैं कि ज्यूडिशियरी ज़्यादा हस्तक्षेप करने लगी है .. लेकिन मेरा मानना यह है कि अगर देश की सर्वोच्च स्तर पर देश की न्यायपालिका इतनी सचेत न हो तो रसूखदार लोग छोटे छोटे बंदों को तो पैरों तले रोंदना शुरू कर दें..

कितना मुश्किल होता है कोई घर खरीदना..हम दोनों जॉब में हैं...एक मेट्रो में एक ठीक ठाक फ्लैट लेना चाहते हैं..(घर नहीं, फ्लैट) ..लेकिन कीमत करोड़ों में है...इतना काला होना चाहिए, इतना सफेद होना चाहिए..हमें नहीं आता यह सब कुछ करना...ऐसे में मैं बहुत बार सोचता हूं कि अगर हमारे स्तर पर यह हाल है तो जो लोग अपने लिए एक छोटे-मोटे आशियाने का जुगाड़ कर लेते हैं ..उन की सच में बड़ी हिम्मत है ....अगर किसी शातिर बिल्डर रूपी अजगर से वे बच पाएं तो ....

सुप्रीम कोर्ट के इन फैसलों की भरपूर प्रशंसा की जानी चाहिए...


अधिकांश लोग तो एक आशियाने की उम्मीद में मर-खप जाते हैं.. इसी छोटी सी हसरत को अपने मन में लिए हुए!


सुप्रीम कोर्ट जैसी शीर्ष संस्थाओं के हस्तक्षेप करने के बावजूद भी बहुत सी अड़चने हैं जमीनी स्तर पर ..लालफीताशाही की मार .. जाति पाति के भयंकर समीकरण...(इस के बारे में बात करना पाप है!) ...अब क्या क्या कहें, कहते हुए अच्छा भी नहीं लगता लेकिन अब चुप्पी भी डस लेगी ऐसा लगने लगा है ...

मुझे अभी ध्यान आ रहा है एक विभाग का ..सुप्रीम कोर्ट ने साफ साफ कहा कि तबादलों के लिए पालिसी बनाओ, दिशा-निर्देश जारी करो ...और उस का पालन करिए...तबादला पालिसी भी बन गई ... लेकिन उस का अनुपालन तो बाबू लोगों ने करना है ...अब कौन कोर्ट कचहरी में बार बार जा कर उस के दरवाजे खटखटाए कि यह नहीं हो रहा, वह नहीं हो रहा...कोर्ट कचहरी में बार बार जाना भी कौन सा आसान है, पैसा लगता है, समय की बरबादी होती है ..और फिर वही तारीख पर तारीख ...और अगर फैसला किसी के हक में आ भी जाए तो अपील ..उस के बाद फिर अपील..

बहुत सी जगह तो बस ऐसे ही आंखों में धूल झोंकी जा रही है .. फ्लैट खरीदते हुए, पेशगी देते हुए लोग डरते हैं..निर्माणाधीन फ्लैट के बारे में तो हम लोग सोच भी नहीं सकते ..हां, रेडी-टू-मूव-इन के बारे में सोचा जा सकता है ...

अभी सामने उस दिन वाली अखबार आ गई तो मन की बातें लिखनी की इच्छा हो गई, और कुछ नहीं...यहां लखनऊ में सब कुशल मंगल है ..आशा है आप भी मजे में होंगे .. बस, यहां अखबारें ही नहीं आ रही...आठ दिन होने को हैं...पता नहीं इतना कौन सा बड़ा लफड़ा है, अगर हाकर्स कहते हैं कि उन की कमीशन बढ़ा दो, बढ़ा देनी चाहिए....क्यों बात को इतना तूल दिया जा रहा है, समझ नहीं आ रहा।

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