शनिवार, 21 मई 2016

पेड़ का ही गला घोंट दिया!

पोस्ट लिखने से पहले ...ध्यान आ रहा है एक गीत का...मधुबन खुशबू देता है ...सागर सावन देता है...जीना उस का जीना है जो औरों को जीवन देता है....wonderful song...evergreen!

कल शाम हम लोग यहां लखनऊ में किसी दुकान में ए.सी देख रहे थे...बाहर आने पर अचानक इस पेड़ की तरफ़ ध्यान गया तो मेरी तस्वीर खींचने की इच्छा हुई...पुराने बुज़ुर्ग पेड़ों की हज़ारों तस्वीरें खींच चुका हूं ...क्योंकि हर पेड़ अपनी अलग दास्तां ब्यां करता दिखता था...वह बहुत सी घटनाओं का मूक गवाह रहा, उसने दशकों से जो कुछ अच्छा-बुरा देखा उसे वह हम से साझा करना चाहता है....हर पेड़ की अपनी दास्तां है..


मैंने इस पेड़ को देखा तो मुझे लगा कि यह तो भई कम से कम सौ साल पुराना ज़रूर होगा...इस के नीचे नारियल पानी बेच रहे बंधु से पूछा तो उसने भी हामी भर दी...

लेकिन यह क्या?....यह किस की कारगुज़ारी है?....पेड़ के आसपास इस तरह का सीमेंट का प्लेटफार्म बना कर उस का तो जैसे गला ही घोंट दिया हो, एक बात...और दूसरी बात कि कितनी धूर्तता से इस बात का ध्यान रखा गया कि कोई भी इस की छाया की ठंड़क न लेने पाए...

मेरे विचार में इस से घटिया सोच हो नहीं सकती कि इतने भीमकाय छायादार पेड़ की ठंडक से महरूम रखने के लिए इतना यत्न किया गया....इतने पुरातन और सुंदर पेड़ को इंसान (?) ने कितना बदसूरत बना कर छोड़ दिया, लेकिन वह फिर भी निःस्वार्थ सेवा जारी रखे हुए है!🍀🍀🌹🌹🍁🌻


हम लोग सब के सब दोगले हैं...(मैं भी उन में शािमल हूं बेशक)..मैंने इस की चार पांच तस्वीरें खींची हैं उन्हें यहां लगा रहा हूं....ये तस्वीरें अहम् इसलिए हैं क्योंकि अन्य शहरों का तो मुझे इतना पता नहीं, हम लोगों की जानकारी बड़ी सतही स्तर की होती है ..लेिकन लखनऊ को जितना मैं देख पाया हूं, जान पाया हूं .....यहां पर लोग अकसर इस तरह की छोटी हरकतें करते नहीं हैं ....

नोटिस करिए इन तस्वीरों में कि यह तो सुनिश्चित किया गया है कि कोई भी राहगीर वहां बैठ तो बिल्कुल नहीं पाए लेकिन एक मंदिर ज़रूर वहां बना दिया गया है ...सोचने वाली बात है कि क्या इस प्रयास से ईश्वर खुश हो जाएंगे?..

घोर अज्ञानता, भम्रजाल का अंधेरा छाया हुआ है संसार में....

मैंने उस नारियल वाले से पूछा कि तुम्हें क्या लगता है ऐसे ठीक है पेड़ जिस के नीचे कोई बैठ ही नहीं पाए या फिर उस के नीचे एक बैठने की जगह होती जहां बीस-पच्चीस लोग लू के थपेड़ों से थोड़ा बच लिया करते!....उसने तुरंत कहा कि बैठने की जगह होती तो बहुत बढ़िया होता....और अगर मंदिर की बजाए पानी के दो चार मटके रख दिए जाते तो ईश्वर और भी खुश हो जाते!
 घने पेड़ों से महरूम रास्ते कितने बेरौनकी लगते हैं...अकसर साईक्लिगं करते मैं महसूस करता हूं.
काश हम लोग पेड़ों का ध्यान रख पाएं....हमें अपनी सांसों की तो परवाह नहीं, कम से कम इस तरह के जीवन दाताओं की सांसों की तो फिक्र कर लिया करें ज़रा... 

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी कमाल की पोस्ट ...मुझे बहुत आनंद आता है आप पूरी यथास्थिति को ठीक ठीक वैसा ही हमारे सामने रख देते हैं जैसा आप उसे पाते हैं ..खूसूरत शहर है लखनऊ और हमारे तो बचपन का शहर बिलकुल जादू सरीखा ज्यादा नहीं सिर्फ तीस पैंतीस साल पहले की ही तो बात है ...आना ही नहीं हुआ ..ज़िंदगी रही तो कभी न कभी इन मोड़ों से भी हम भी गुजर के देखेंगे डाक्टर साहब ....जारी रहिये

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    1. बहुत अच्छे...अच्छा लगा आप का लखनऊ से रिश्ता जान कर ...ज़रूर आईए...
      धन्यवाद...

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