शनिवार, 14 मई 2016

यह संविधान कथा का क्या माजरा है?


मैंने भी श्री राम कथा, गरूड़ पुराण कथा, भागवत कथा के बारे में तो सुन रखा है ...लेकिन यह संविधान कथा की बात आज पहली बार सुनने को मिली..

कोई भी काम की शुरूआत राम जी के नाम से करनी चाहिए...परसों शाम हम लोग ऐसे ही टहलने निकले तो दूर कहीं से किसी कथा की आवाज़ आ रही थी..हम उस आवाज़ को ढूंढने हुए एक पंडाल में पहुंच गये जहां पर श्रीराम कथा चल रही थी...वहां पर बैठे आधा घंटा के करीब...कोई ज़रूरी फोन आया, वहां से निकलना था..उस कथा के पंडाल से बाहर निकलते हुए गेट पर एक कार वाले ने अपनी कार रोकी और पूछने लगा कि राम जी का जन्म हो गया?...मैं उस का प्रश्न समझा नहीं....उसने फिर से दोहराया राम जी का जन्म करवा दिया गया है क्या?....मुझे समझ में आ गया कि श्री राम कथा के कईं अंग होते होंगे ...यह उन में से ही किसी के बारे में पूछ रहा होगा..

लेकिन प्रश्न समझ आए को क्या करता, अगर उस का जवाब ही नहीं पता था...मैं अंदर आधा घंटा बैठ कर आया था और मुझे इतने अहम् प्रश्न के बारे में जानकारी न थी, इस का मतलब साफ़ है कि मेरा ध्यान कितना कथा में था, और कितना और कहीं! बहरहाल, उस बंदे की आतुरता भांपते हुए मैंने पास खड़ी अपनी मां से पूछा कि राम जी का जन्म हो गया है क्या?...वह भी इस पर्चे में फेल हो गईं। 

खैर, मैंने उस बंदे से माफ़ी मांग ली कि आप स्वयं अंदर जा कर देख लीजिए....लेिकन सच बताऊं मुझे उस समय बहुत लज्जा आई ...यही सोच कर कि अगर मेरा ध्यान इतना भी कथा की तरफ़ नहीं था तो मैं अंदर बैठा कर क्या रहा था! ...it was a moment for introspection!



हां, एक बात तो शेयर करनी भूल ही गया...श्री राम कथा के दौरान मैंने देखा कि जब कथा चल रही थी तो और आचार्य जी कोई श्लोक सुनाने लगते तो मेरे आगे बैठे सज्जन पता नहीं किस डिवाईस पर साथ साथ श्लोक वहां से पढ़ रहे थे ..मुझे लगा कि वे आई-पैड है..क्योंकि श्रीमति जी अकसर आई-पैड पर ही अपना काम करती हैं, फिर ध्यान आया कि शायद किंडल होगा या कोई टेबलेट....पता नहीं... 

श्री राम कथा की सच्चाई ब्यां करने के बाद आप को संविधान कथा के बारे में कुछ बताना चाहता हूं...मैंने आज पेपर में देखा कि एक रिटायर्ड इंकम टैक्स कमिश्नर पांडेय जी गांव गांव जा कर संविधान कथा बाचते हैं तो मुझे इतनी खुशी हुई कि मैं पेपर को वहीं कुर्सी पर रख कर यह पोस्ट लिखने बैठ गया...आप स्वयं पढ़ लीजिए...अगर क्लियर पढ़ना हो तो इस तस्वीर पर क्लिक कर के पढ़िएगा...


अकसर बस-अड्डों आदि पर इंग्लिश सीखने के कायदे, जर्नल नालेज की छोटी छोटी किताबें, पैनों के पैकेट में खरीदता रहा हूं ...उन बेचने वालों की बातों में दम ही इतना होता है कि आदमी कहता है कि यार, दस बीस रूपये खर्च कर इन किताबों पैनों को तो खरीद ही लेते हैं, कभी काम ही आएंगे...फिर मैं अकसर इन किताबों को आगे बांट दिया करता था...एक किताब अभी ढूंढी तो मिल गई...यह पक्का होता है कि मैं इन किताबों को कभी पढ़ता नहीं हूं...टाइम ही किस के पास है!...जैसे और किताबें बुक-शेल्फों पर इंतज़ार करती रहती हैं, यह भी उन के साथ पड़ी रहती हैं...

बुक-शेल्फ से इसे निकाल रहा था तो मुझे अचानक ध्यान आ गया ...कि तीन साल पहले जब हम लोग यहां लखनऊ में आये तो एक दिन बड़े डाकखाने के बाहर एक रिक्शे से लाउड-स्पीकर से कुछ आवाज़ें आ रही थीं, एक बंदा ये किताबें बेच रहा था जिस में तरह तरह के कानूनों के बारे में जानकारी थी, मान िलया किताब में जानकारी तो थी ही, लेिकन भीड़ जुटने का कारण उस का अंदाज़े-ब्यां था....इस किताब के कसीदे वह इस अंदाज़ में पढ़ रहा था कि राहगीर को यही लगता था कि यह किताब जैसे तुरंत उस का राशन-कार्ड बनवा देगी, आरटीआई से वह किस तरह से दुनिया बदल देगा...२५ रूपये की किताब...और खरीददार को जिस अंदाज़ में वह तरह तरह के हेल्पलाइन नंबर तुरंत उसी समय लिख कर दे रहा था जैसे कि हर कापी पर कोई नामचीन लेखक अपने आटोग्राफ दे रहा हो... जी हां, मैंने भी खरीदी थी एक कापी...लोगों की उत्सुकता देखते बन रही थी और इसे भुनाने वह विक्रेता अच्छे से जानता था...वैसे इस किताब में आम आदमी के हिसाब से बहुत सी जानकारी है ..और पैसे भी बिल्कुल कम ....हम जैसों के पास तो और भी विकल्प हैं, नेट, न्यूज़-पेपर हैं, लेिकन बहुत से लोगों के लिए इस तरह की किताब बहुत सी स्कीमों के किवाड़ खोल देने का काम करती हैं, निःसंदेह...



निःसंदेह से ध्यान आया...निःस्वार्थ...जैसा कि वह बंदा संविधान कथा वाचक कर रहा है...मुझे लगता है कि मैं भी रिटायर होने के बाद कुछ न कुछ ऐसा ही करूंगा...तंबाकू-गुटखा छुड़ाने से संबंधित....मैं अकसर लोगों को कहता हूं हम लोग ३०-४०-५० साल अपने अपने प्रोफैशन में घिस जाते हैं...इतना ज्ञान होता है लेकिन वह आम आदमी तक बहुत कम पहुंच पाता है ...अभी मैं अपने स्कूल से एक मित्र से बात कर रहा था ...डा साहब पैथोलॉजी मेें एम.डी हैं और मैडीकल कालेज में पढ़ाते हैं....ब्लड-बैंक के बारे में कुछ बातें कर रहे थे तो मुझे उन दस-पंद्रह मिनट के दौरान यही लग रहा था कि इस तरह की जनोपयोगी बातें आम जनता तक उन की ही भाषा में भी पहुंचनी चाहिए....ठीक है, सरकारें अभियान चलाती हैं, रेडियो-टीवी पर भी बातें होती हैं ..इन सब के साथ मुझे ऐसा लगता है कि हर बंदा किसी न किसी काम का विशेषज्ञ है, उस के पास ऐसा ज्ञान है जिसे समाज को ज़रूरत है ...इसलिए इन में सो जो भी सक्षम हों, उन्हें अपने अनुभव, अपनी सीख बिल्कुल खुलेपन से लिख कर लोगों तक पहुंचानी चाहिए....

यकीन मानिए, बहुत सी बातें ऐसी होती हैं जिन्हें हम तुच्छ समझते हैं ..और सोचते हैं कि इस में शेयर करने जैसा है क्या, लेकिन बहुत से लोगों के लिए वह बड़े काम की बात होती है और उन्हें पहले से इस का इल्म भी नहीं होता...

कहना क्या है, सुबह सुबह क्या लेकर बैठ गया मैं भी ...मैसेज केवल इतना है कि संविधान कथा बढ़िया है, श्री राम कथा भी मुबारक है ..साथ ही साथ दुनिया में बैठे धुरंधर विशेषज्ञ कुछ इस तरह की भी कथाएं कहें ....मानव शरीर की कथा, म्यूनिसिपैलिटि की कथा, बैंकों की कथा, शेयर बाज़ार कथा......भवन निर्माण कथा....लिस्ट को आप जितना लंबा करना चाहें, लेकिन शुरूआत तो करिए...अपनी कहानी कहिए तो ....सुनाईए...लोग आतुर हैं...उन्हें आप के अनुभव से बहुत कुछ सीखना है ...जब आप अपने अनुभव को कथाओं के रूप में कहेंगे तो संपेष्णीयता को चार चांद लग जाएंगे...यकीनन...मैं तो ऐसा कुछ करने वाला हूं ...कुछ तो कर ही रहा हूं...भविष्य के लिए भी कुछ योजनाएं हैं...आमीन!!

बातें कुछ मुश्किल नहीं है, हम ने स्वयं कर रखी हैं, शायद अपने स्वार्थ की वजह से...कोई राकेट साईंस नहीं है, बस ज्योत से ज्योत जगाने वाली बात है ...सिंपल....

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